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KORBA. SECL के विस्थापितों की भूख हड़ताल खत्म हो गई है। डिप्टी जीएम के भरोसा देने के बाद हड़ताली विस्थापितों ने भूख हड़ताल खत्म कर दी है। आश्वासन में कहा है कि लंबित प्रकरण का 15 दिन में निराकरण कर दिया जाएगा। ये विस्थापित लोग नौकरी की मांग करते 368 दिन से ज्यादा का समय बिता चुके है। इसके बाद अब एसईसीएल ने इनकी सुध ली है।
1 नवंबर से कर रहे थे प्रदर्शन
बता दें कि इस क्षेत्र के खनन प्रभावित लोगों ने रोजगार और पुनर्वास की समस्या को हल न करने के विरोध में एक नंवबर को काला दिवस मनाने की घोषणा की थी। कुसमुंडा, गेवरा कार्यालयों पर और नरईबोध खदान में काले झंडों के साथ प्रदर्शन कर कोल इंडिया का पुतला जलाया। इन प्रदर्शनों में 45 गांवों के सैकड़ों लोगों ने हिस्सा लिया था।
धरना प्रदर्शन से रेल परिवहन भी प्रभावित
1 नवम्बर को कुसमुंडा महाप्रबंधक कार्यालय के सामने धरना देते हुए उनके एक साल पूरे हो गए। वहीं गेवरा कार्यालय के सामने भी उनका धरना शुरू हो चुका है। इस बीच 6 बार हुई खदान बंदी के कारण 40 घंटे से भी अधिक समय तक खदानें बंद रही हैं और 2-3 बार रेल परिवहन प्रभावित हुआ है। इससे एसईसीएल को करोड़ों रुपयों का नुकसान पहुंचा है। इस बीच आंदोलन कर रहे 16 लोगों को जेल भी भेजा गया है।
किसान सभा के जिला सचिव ने दी जानकारी
किसान सभा के जिला सचिव प्रशांत झा के अनुसार भूविस्थापितों के आंदोलनों के कारण कोरबा जिले में एसईसीएल को जितना नुकसान हुआ है। उतनी राशि से ही ग्रामीणों के रोजगार और पुनर्वास संबंधी मांगें पूरी की जा सकती थीं। लेकिन अपनी-अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरा करने में एसईसीएल के अधिकारियों को कोई दिलचस्पी ही नहीं है, क्योंकि अपात्रों को रोजगार बेचकर वे करोड़ों कमा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस काला दिवस के जरिए हमने दमन के खिलाफ संघर्ष तेज करने का फैसला लिया है और 4 नवंबर से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू करने जा रहे हैं।
कोयला खनन के लिए अधिग्रहित की गई थी जमीन
1978 से लेकर 2004 के मध्य कोयला खनन के लिए इस क्षेत्र के हजारों किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई है। लेकिन तब से अब तक वे अपने रोजगार और पुनर्वास के लिए भटक रहे हैं। छत्तीसगढ़ किसान सभा ने एक अनवरत आंदोलन के जरिए भूविस्थापितों की मांगों को स्वर दिया है। इसके साथ ही बरसों पुराने भूमि अधिग्रहण के बदले लंबित रोजगार प्रकरण, मुआवजा, पहले से अधिग्रहित जमीन की वापसी, प्रभावित गांवों के बेरोजगारों को खदानों में काम देने, महिलाओं को स्वरोजगार देने और पुनर्वास गांव में बसे भू-विस्थापितों को काबिज भूमि का पट्टा देने की मांगें उठाई है।